सेवा शब्द का अर्थ
' सेवा ' शब्द के कितने ही अर्थ होते हैं । सेवा शब्द जितना मीठा है सेवानृवृत शब्द उतना ही यांत्रिक । भगवान की सेवा होती है तो नौकरी से सेवा नृवृति।
सेवा का अर्थ समर्पण से है । सेवा उसकी की जाती है जिसको हम उस सेवा को पाने के योग्य समझते हैं। जो हमारे सर पर छत है जिसके बिना हमारा जीवन असम्पूर्ण है, उनकी ही बड़ी प्रेम भाव से हम सेवा कर सकते हैं।
इसलिए हम साहबों की सेवा नहीं, परन्तु उनकी खिदमत करते हैं। खिदमत का संबंध स्वार्थ तथा भय से है । सेवा का संबंध परमार्थ तथा विश्वास से ।
इसलिए 'गौ सेवा' है, गौ खिदमत नहीं ।
सेवानृवृत का अर्थ है यांत्रिक, सेवा करने वाले का प्रेम-समपर्ण अनंत है अर्थात् इसका अर्थ मानव को एक यंत्र समझना।
जब गरूड़ श्री हरि की सेवा में गए तब उनकी माता का गर्व अलौकिक था । यदि गरूड़ सिविल सर्वेंट होते तो उनकी माता को यह आनंद मिल पाता क्या?
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